दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एक बार फिर अपनी जातिवादी मानसिकता का परिचय दिया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एकेडमिक काउंसिल के कुछ सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) के कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी और दो दलित लेखकों को हटाने का विरोध किया है. काउंसिल ने कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी ‘द्रौपदी’ को हटाने को मंजूरी दे दी है. साथ ही दो और दलित लेखकों भी हटा दिया है, जिसके बाद विरोध शुरू हो गया है. सदस्यों ने काउंसिल के सदस्यों पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है.
खबर के अनुसार डीयू एकेडमिक काउंसिल के 15 सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोटिस दिया है और लिखा है कि ये पाठ्यक्रम के साथ ‘बर्बरता’ है. इस नोट में लिखा है कि कमेटी ने दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को हटा दिया है और उनकी जगह ऊंची जाति की लेखक रमाबाई को जगह दे दी गई. सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोट में लिखा है, ‘कमेटी ने बिना कुछ सोचे-समझे मनमाने ढंग से महाश्वेता देवी की लघु कहानी द्रौपदी को पाठ्यक्रम से हटाने को कह दिया है. ये कहानी डीयू के पाठ्यक्रम में 1999 से शामिल थी.’ सदस्यों का कहना है कि कमेटी ने महाश्वेता की कोई और दूसरी लघु कहानी को भी शामिल करने से इनकार कर दिया.
लघुकथा ‘द्रौपदी’ में ऐसा क्या है
द्रौपदी बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित एक लघुकथा है. यह 27 साल की एक मजबूत दिमाग की महिला दोपदी की कहानी है, जो पितृसत्ता, बलात्कार और यौन शोषण के खिलाफ लड़ती है. दुलना दोपदी का पति है. वे संथाली जनजाति से संबंध रखते हैं. दोपदी अपने पति दुलना के साथ मिलकर कई अमीर जमींदारों की हत्या करती है, क्योंकि उन्होंने गांव के पानी के स्रोतों पर कब्जा कर रखा था. वो पानी के स्रोतों को अपने अधीन करती है ताकि गांव वालों की पानी की समस्या समाप्त हो सके.
उसके बाद सरकार इस विरोध करने वाले जनजाति ग्रुप को पकड़ने की कोशिश करती है. द्रौपदी को पकड़ लिया जाता है सिपाही उसका रेप करते हैं. दोपदी का बलात्कार करने के बाद सिपाही उसे वापस कपड़े पहनने को कहते हैं ताकि उसे अफसर के पास ले जाया जा सके, लेकिन वो कपड़े पहनने से इनकार कर देती है और कपड़ों को दांतों से फाड़कर फेंक देती है. वो बिना कपड़े के ही दिन की रोशनी में अफसर के सामने चली जाती है और वो कहती है कि मैं कपड़े क्यों पहनूं, यहां पर कोई इंसान ऐसा नहीं जिससे मैं शर्माऊं. उसके इस रूप से सब आश्चर्य में पड़ जाते हैं. निहत्थी दोपदी को देख बिल्कुल डर जाता है.
महाश्वेता देवी की इस लघुकथा में एक ताकतवर सेनानायक एक निहत्थी लड़की के सामने बिल्कुल असहाय महसूस करता है. इसके माध्यम से एक ऐसी महिला का चरित्र दर्शाया गया है, जो खुद के दम पर पितृसत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ती है. इस प्रकार दोपदी का शरीर सत्तावादी शक्ति की हवस और लैंगिक शोषण दोनों का जीता-जागता उदाहरण बन जाता है. दोपदी तमाम तरह की यातनाओं को सहन करती है लेकिन हार नहीं मानती.
अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसी कथाओं या कहानियों को दिल्ली जैसे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाना चाहिए जो आदिवायिसों पर हो रहे जुल्म और अत्याचार की सच्ची तस्वीर दिखाते हैं.
सदस्यों ने आरोप लगाया है कि निगरानी समिति ने हमेशा से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को लेकर पूर्वाग्रह का रवैया अपनाया है. उसने हमेशा पाठ्यक्रम से ऐसी आवाजें हटाने की कोशिशें की हैं. आरोप ये भी है कि समिति में कोई भी दलित या आदिवासी समुदाय का सदस्य नहीं है.
वहीं, इन आरोपों पर निगरानी समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एमके पंडित ने न्यूज एजेंसी से कहा, ‘मुझे नहीं पता कि वो लेखक दलित थे. अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष मीटिंग में मौजूद थे.’ उन्होंने कहा, ‘क्या वो अपने विषय के एक्सपर्ट नहीं हैं. आर्ट्स, सोशल साइंस के डीन भी मीटिंग में थे. क्या वो एक्सपर्ट नहीं हैं. आर्ट्स, सोशल साइंस के डीन भी मीटिंग में थे. क्या वो एक्सपर्ट नहीं हैं? लोकतंत्र में असहमति होना लाजमी है. वो हमारे कलीग हैं और हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं.’ उन्होंने कहा कि कुछ कहानियां सालों से पढ़ाई जा रही हैं, जिनमें अब बदलाव होना तय है.