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दरिद्र सवर्णों को 10% आरक्षण जारी रहेगा:सुप्रीम कोर्ट के 5 में से 3 जज EWS के पक्ष में

दरिद्र सवर्णों को 10% आरक्षण जारी रहेगा:सुप्रीम कोर्ट के 5 में से 3 जज EWS के पक्ष में

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में दरिद्र सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को अपनी मंजूरी दे दी.दरिद्री सवर्णों को 10% आरक्षण दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया है। चीफ जस्टिस यूयू ललित के नेतृत्व में 5 जजों की पीठ ने 3:2 से संविधान के 103वें संशोधन के पक्ष में फैसला सुनाया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने EWS कोटा के खिलाफ अपनी राय रखी। बाकी तीन जजों ने कहा यह संशोधन संविधान के मूल भावना के खिलाफ नहीं है।अब इस फैसले के साथ ही देश में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण जारी रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50% कोटा को बाधित नहीं करता है. ईडब्ल्यूएस कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को फायदा होगा. ईडब्ल्यूएस कोटा कानून के समक्ष समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. वहीं जस्टिस रविंन्द्र भट्ट ने कहा कि इस 10% रिजर्वेशन में से एससी/एसटी/ ओबीसी को अलग करना भेदभावपूर्ण है.

सीजेआई ललित ने इसे असंवैधानिक करार दिया और वहीं जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने भी असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया. जस्टिस रविंन्द्र भट्ट ने कहा कि 103 वां संशोधन भेदभाव पूर्ण है. दोनों ने बहुमत के फैसले पर असहमति जताई है.

पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगेः याचिकाकर्ता
कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वो इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे. वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से ईडब्ल्यूएस कोटा आरक्षण मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाएगी क्योंकि 2 जजों का फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में है. EWS कोटे का लाभ पाने की सीमा 8 लाख रुपए सालाना कमाई तक है। यानी, इसका लाभ उन्हें मिलेगा जिनकी मंथली इनकम 66 हजार रुपए है। देश के ज्यादातर परिवारों की मंथली इनकम 25 हजार है। इससे साफ होता है कि इसका लाभ पाने वाले वर्ग की आर्थिक स्थिति दूसरे वर्गों से बेहतर है।

हमने 50% का बैरियर नहीं तोड़ा- केंद्र की दलील
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।

EWS रिजर्वेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार जोरदार बहस हुई। वकीलों की दलील थी कि सवर्णों को आरक्षण देना संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा है। हालांकि SC इस बात से सहमत नहीं दिखा था। तब बेंच ने कहा था कि इस बात की जांच की जाएगी कि ये सही है या गलत। सितंबर में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई। इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ

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