सारनाथ में अशोक स्तंभ बनने की कहानी भी काफी रोचक है। 273 ईसा पूर्व में भारत में मौर्य वंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक का शासन था। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया।
इसका असर यह हुआ सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया। और अपनी सत्ता का लोककल्याण के लिए इस्तेमाल किया. उन्होंने बुद्ध के वचनों को जन -जन तक प्रचारित करने का कार्य किया. यहीं से अशोक स्तंभ बनने की शुरुआत होती है। सम्राट अशोक बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उसके प्रचार में जुट गए। अपने शासनकाल में उन्होंने 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। जिनमें सारनाथ का अशोक स्तंभ भी शामिल है। इसे 250 ईसा पूर्व बनवाया गया था।
यही अशोक स्तंभ आजादी के बाद संविधान सभा द्वारा भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
अशोक स्तंभ में 4 शेरों के इस्तेमाल की कहानी जानिए
अशोक स्तंभ में शेरों को शामिल करने के पीछे की कहानी रोचक है। भगवान बुद्ध को सिंह का पर्याय माना जाता है। बुद्ध के सौ नामों में से शाक्य सिंह, नर सिंह नाम का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा सारनाथ में दिए भगवान बुद्ध के धर्म उपदेश को सिंह गर्जना भी कहते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्त्व दिया गया।
भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है। अशोक स्तंभ में शीर्ष पर 4 एशियाई शेर बने हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। ये चारों शेर शक्ति, साहस, विश्वास और गर्व को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय प्रतीक में भले ही 4 शेर हैं, लेकिन गोलाकार आकृति हाेने के चलते हर एंगल से देखने पर सिर्फ 3 ही दिखाई देते हैं। इसके अलावा स्तंभ पर घोड़े, बैल, हाथी और शेर की भी फोटो है। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस शेर स्तंभ के ऊपर धर्मचक्र रखा हुआ है।
सभी अशोक स्तंभों को चुनार और मथुरा के पत्थर का उपयोग करके उसी क्षेत्र के शिल्पकारों द्वारा तराशा गया था। राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है।