प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने द मिंट इस अख़बार में प्रकाशित एक लेख में में नए संविधान की बात कही. इसे लेकर पर विवाद बढ़ा तो प्रधानमंत्री पैनल से सफ़ाई पेश करते हुए ख़ुद को और केंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया.
गुरुवार को ईएएसी-पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, “डॉ बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वो किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता.” ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है.
15 अगस्त को देबरॉय ने आर्थिक अख़बार मिंट में ” देयर इज़ ए केस फॉर वी द पीपल टू इंब्रेस अ न्यू कॉस्टिट्यूशन ” शीर्षक वाला लेख लिखा था.
इसमें उन्होंने लिखा था, “अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था. इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर बार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया है कि इसकी ‘बुनियादी संरचना’ को बदला नहीं जा सकता है. भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र कुछ भी चाहता हो. जहाँ तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, अगर नया संविधान होगा तो ये नियम उस पर लागू नहीं होगा. ”
देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज़ 17 साल होता है. भारत के वर्तमान संविधान को औपनिवेशिक विरासत बताते हुए उन्होंने लिखा, “हमारा वर्तमान संविधान काफ़ी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. इसका मतलब है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है.”
लेख में उन्होंने कहा है, “हम जो भी बहस करते हैं, वो ज़्यादातर संविधान से शुरू और ख़त्म होती है. महज़ कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा. हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और शुरू से शुरुआत करना चाहिए. ये पूछना चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है. हमें ख़ुद को एक नया संविधान देना होगा.”
देबरॉय के इस लेख की आलोचना की जा रही है और कई नेता और सासंद इस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने भी इस लेख पर कहा है कि क्या ये सब कुछ पीएम के मर्ज़ी से हो रहा है.उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर लिखा, “प्रधानमंत्री मोदी का कोई आर्थिक सलाहकार है बिबेक देबरॉय. वह बाबा साहेब के संविधान की जगह नया संविधान बनाने की वकालत कर रहा है. क्या प्रधानमंत्री की मर्ज़ी से यह सब कहा और लिखा जा रहा है?
सीपीएम के सांसद जॉन ब्रिटास ने भी इस लेख पर आपत्ति जताते हुए लिखा है, “ बिबेक देबरॉय नया संविधान चाहते हैं, उनकी मुख्य समस्या संविधान के बुनियादी ढांचे में दर्ज समाजवादी, सेक्युलर, लोकतांत्रिक जैसे शब्दों से हैं. हक़ीकत में वह हिंदू राष्ट्र की वकालत करते हैं. अगर उन्होंने निजी हैसियत से लिखा है तो अपना पद लेख के साथ क्यों लिखा?” बीते दिनों केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के लिए एक हाई पावर्ड कमिटी बनाई और इसमें बिबेक देबरॉय को सदस्य बनाया गया.
बसपा अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट कर लिखा-
शिव सेना (उद्धव ठाकरे) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा है, “वो एक नया संविधान चाहते हैं जो उनके फ़ायदे के लिए काम करे. वो एक नया विचार चाहते हैं ताकि इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाए. उन्हें नए स्वतंत्रता सेनानी चाहिए क्योंकि अभी उनके पास कोई नहीं है. वो भारत में नफ़रत का एक नया आइडिया चाहते हैं. वो एक नया अनैतिक लोकतंत्र चाहते हैं. मिलिए भारत के नए बौद्धिक लोगों से. ”
आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इस लेख पर कहा है, “आरएसएस कभी भी संविधान को लेकर सहज नहीं था इसलिए वर्तमान सरकार और इसके चीफ़ संविधान में दर्ज विचार-आज़ादी, समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता से नफ़रत करते हैं. बिबेक देबरॉय ने उनकी ही भाषा बोली है और उनके आदेश पर कहा है.”
विवाद बढ़ने पर गुरुवार को समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए देबरॉय ने कहा, “पहली बात यह है कि जब भी कोई कॉलम लिखता है, तो हर कॉलम में हमेशा यह डिस्क्लेमर मौजूद होता है कि यह कॉलम लेखक के व्यक्तिगत विचार प्रदर्शित करता है… कॉलम उस संगठन के विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करता, जिससे लेखक जुड़ा हुआ है… यह सभी कॉलमों के लिए अपनाई जाने वाली मानक प्रक्रिया है, और मैं जो भी कॉलम लिखता हूं, इसी डिस्क्लेमर के साथ प्रकाशित होते हैं…”
बिबेक देबरॉय का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों ने उनके व्यक्तिगत विचारों को EAC-PM के विचार माना. उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि EAC-PM जब भी अपने विचारों को सार्वजनिक डोमेन में लाती है, तो वह उन्हें अपनी वेबसाइट पर अपलोड करती है, और अपने हैंडल से ट्वीट करती है.
बिबेक देबरॉय ने कहा, “यह पहली बार नहीं है, जब मैंने इस तरह के मुद्दे पर लिखा… मैंने इस तरह के मुद्दों पर अतीत में भी लिख चुका हूं, और इसी तरह के विचार व्यक्त करता रहा हूं… मैंने इसी तरह के मुद्दे पर बात की है… और यह मुद्दा बेहद साधारण है… मुझे लगता है कि हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए…” PM की आर्थिक सलाहकार परिषद अध्यक्ष ने यह भी कहा कि वह अपने विचारों को विवादास्पद नहीं मानते, क्योंकि हर देश कभी न कभी अपने संविधान पर पुनर्विचार करता ही है.
उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता, यह विवादास्पद है… क्योंकि समय-समय पर दुनिया का हर देश संविधान पर पुनर्विचार करता है… हम भी संशोधनों के ज़रिये ऐसा करते रहे हैं… और भारतीय संविधान के कार्यकलापों पर विचार-विमर्श के लिए एक आयोग भी गठित किया गया था…”
साल 2017 में तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री अनंत हेगड़े ने भी संविधान बदलने को लेकर बयान दिया था.उन्होंने कहा था कि बीजेपी “संविधान बदलने” के लिए सत्ता में आई है और “निकट भविष्य” में ऐसा किया जाएगा.कर्नाटक के कोप्पल में ब्राह्मण युवा परिषद को एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हेगड़े ने “धर्मनिरपेक्षतावादियों” पर भी निशाना साधा था.