जेएनयू के कुलपति शांति श्री धुलीपुड़ी के बयान से अयोध्या के स्वघोषित संतो में काफी नाराजगी है. संत समाज ने जेएनयू (JNU) के कुलपति के बयान की निंदा करते हुए उन पर हमला किया है. दरअसल जेएनयू की कुलपति ने भगवान शिव को पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से आने की बात कही थी. इसके साथ ही उन्होंने सभी महिलाओं को शुद्र बताया है. जिसके बाद अयोध्या के संतों ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
लोनी से बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने जेएनयू कुलपति के खिलाफ बुधवार को लोनी थाने में तहरीर दी है. उन्होंने कुलपति के खिलाफ रासुका लगाने की मांग की है.
उनके बयानों को लेकर जब मीडिया में चर्चा हुई तो वाइस चांसलर ने इस पर अपनी सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि वह डॉक्टर आंबेडकर, जेंडर जस्टिस और समान नागरिक संहिता के बारे में बोल रही थीं और इसलिए उन्हें डॉ. आंबेडकर के विचारों का विश्लेषण करना पड़ा और वह उसे ही सामने रख रही थीं जो डॉ आंबेडकर ने अपनी किताबों में कहा है। वाइस चांसलर ने कहा कि यह उनके विचार नहीं हैं।
वाइस चांसलर ने अपने भाषण में कहा था कि मनुस्मृति के मुताबिक सभी महिलाएं शूद्र हैं। इस पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा, “डॉ. आंबेडकर ने मनुस्मृति के बारे में काफी कुछ लिखा है और मैं सिर्फ उनकी लिखी बातों का विश्लेषण कर रही थी। चूंकि डॉ. आंबेडकर संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे, इसलिए यह बेहद जरूरी है कि उनके दर्शन को समझा जाए।” उन्होंने कहा कि जब वह जेंडर जस्टिस के बारे में बात कर रही थीं तो उनके लिए बेहद जरूरी था कि वह इस दृष्टिकोण का भी विश्लेषण करें।
वाइस चांसलर ने कहा था, “मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण कब्रिस्तान में बैठ सकते हैं इसलिए अगर आप देखें तो हमारे भगवान ऊंची जातियों से नहीं आते। लक्ष्मी, शक्ति या फिर कोई भी भगवान हो। अगर आप जगन्नाथ की बात करें तो वह आदिवासी लगते हैं तो फिर हम क्यों इस भेदभाव को जारी रखे हुए हैं, यह बेहद, बेहद अमानवीय है।”
डॉक्टर आंबेडकर की किताब ‘जाति के विनाश’ का संदर्भ देते हुए वाइस चांसलर ने कहा था कि अगर भारतीय समाज आगे बढ़ना चाहता है तो जाति को खत्म करना होगा और यह बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा था, “मुझे समझ में नहीं आता कि हम जाति की पहचान को लेकर इतने भावुक क्यों हैं, यह बेहद भेदभावपूर्ण है और पूरी तरह असमान है।”
वाइस चांसलर ने अब कहा है कि कुछ बातों पर विवाद है लेकिन डॉ आंबेडकर ने यही कहा है और हमें इसे आलोचनात्मक रूप से देखना होगा क्योंकि डॉक्टर आंबेडकर इन बातों से असहमति रखने वाले बड़े लोगों में से एक हैं। उन्होंने कहा कि यह आधुनिक भारत के लिए बेहद जरूरी है और विशेषकर तब जब हम अमृत काल की ओर बढ़ रहे हैं और ऐसे लोगों की तरफ देख रहे हैं जिन्होंने काफी कुछ लिखा है।
शांति श्री धुलीपुड़ी पंडित ने कहा कि उन्होंने यह भी कहा था कि हिंदू धर्म ही एकमात्र धर्म है और जीने का तरीका है। सनातन धर्म असहमति, विविधताओं और अंतर्विरोधों को स्वीकार करता है। जबकि कोई भी अन्य धर्म ऐसा नहीं करता और हिंदू धर्म को ही इसका श्रेय जाता है कि इससे असहमति रखने वाले गौतम बुद्ध से लेकर डॉ. आंबेडकर सभी को यहां पर अहमियत दी जाती है।