कोरोना संक्रमण के कारण नहीं तो इलाज के अभाव में भारत में कई लोग अपनी जान गंवा चुके है. ऑक्सीजन के कमी, अस्पताल में नदारद सुविधाएं, चरमराई व्यवस्था के कारण देश के करोडो लोग हताश है, निराश है. लेकिन इसमें में भी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और उनकी सरकार पाजिटिविटी अनलिमिटेड देखती है.
कोरोना का हमने हरा दिया इस लिहाज में अपने सीने को 56 इंच तक तानकर मोदी प्रधानसेवक मोदी दुनिया में अपना डंका बजाते रहें। देश के वैज्ञानिकों ने सेकंड वेव की चेतावनी देने के बावजूद देश में लाखों लोगों के साथ कुम्भ का आयोजन हुआ, चुनाव में वर्चुअल रैली का ऑप्शन होते हुए भी लाखों की भीड़ बुलाई गई. नतीजा ये हुआ की कोरोना की सेकंड वेव ने देश में तबाही मचा दी. प्रधानसेवक के पास एक साल था लेकिन इस दौरान देश की हेल्थ सिस्टम को मजबूत नहीं किया गया. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर 20,000 करोड़ रूपये का खर्च निर्धारित है, इसकी ज्यादा जरुरत नहीं है. प्रधानसेवक मोदी जैसे फ़क़ीर के पास 8500 करोड़ का हवाई जहाज है लेकिन फिर भी अपने अहंकार को बरकारर रखते हुए प्रधानसेवक ने लोगों को मरने के लिए मजबूर कर दिया. देश में हेल्थ सुविधाएं अपडेट नहीं की वही सेंट्रल विस्टा में प्रधान सेवक का बंगला दिसंबर 2021 तक पूरा करने का निर्देश दिया गया.
देश के कई शहरों से ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों के मरने की ख़बरें आयी. लेकिन देश में नए अस्पताल बनाने की घोषणा नहीं हुई. आयडीबीआय बैंक बेचने की तथा 20,000 करोड़ का नया संसद भवन तथा प्रधानमंत्री आवास का काम जारी रखने पर सहमती बनी.
इस बीच उत्तर प्रदेश और बिहार से बिहार-यूपी में कोरोना महामारी के बीच बहती लाशें इस तरह की ख़बरें आयी. इस बारे में हमने जायजा लिया जिसके बाद तैरती लाशों का सच सामने आया.दैनिक भास्कर अख़बार के बक्सर संस्करण में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ श्मशान घाट पर 15 से 20 हज़ार ख़र्च हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक़ बक्सर के श्मशान घाटों पर एंबुलेंस से शव उतारने के लिए 2000, लकड़ी व अन्य सामान के लिए 12 हज़ार रुपए लग रहे हैं.
वही स्थानिक लोगों के कहना है की ब्राह्मण पंडे पुजारियों ने आपदा में अवसर ढूंढ लिए है. इन पंडो ने दाह संस्कार के रेट्स काफी हाई कर दिए है, पंडे-पुजारियों की दक्षिणा के साथ लगभग 30 से 40 हजार का खर्चा एक लाश के दाह संस्कार के लिए आता है.हिंदुओं में मोक्ष प्राप्ति के लिए दाह संस्कार किया जाता है. लेकिन पंडे-पुजारियों ने रेट्स बढ़ा दिए है. जिसके कारण हिंदुओ को मजबूरी में डेड बॉडी को दाह-संस्कार की जगह दफन करवाना पड़ रहा है. ब्राह्मणों द्वारा हिन्दुओं पर किया जा रहा ये जुल्म है.
दैनिक अमर उजाला के कानपूर एडिशन में प्रकाशित खबर के अनुसार लॉकडाउन के कारण लोग बेरोजगार है. लोगों के पास इलाज तक के पैसे नहीं है.
ऐसे में पंडों द्वारा इस महामारी में लूट मचाई गई है. 30 से 40,000 देने में लोग सक्षम नहीं होते जिसके कारण परिजन सीधे घाट आते है और गंगा नदी के किनारे शवों को दफनाकर चलें जाते है. गरीब और असहाय लोगों का इस तरह से नाजायज फायदा उठाकर पैसे ऐठने की पंडे-पुजारियों के इन करतूतों के कारण लोग शवों को दफ़नाने के लिए मजबूर है. हिंदू धर्म में कर्मकांड के अनुसार जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए गए हैं। इनमें आखरी यानी सोलहवां संस्कार है मृत्यु के बाद होने वाले संस्कार। जिनमें व्यक्ति की अंतिम बिदाई दाह संस्कार के रीती रिवाज शामिल है. लेकिन पंडे-पुजारी मुनाफाखोरी के कारण हिन्दुओ के साथ नाजायज तरीके से जुल्म किये जा रहें है. एक तो लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल रहा तो दूसरी तरह मौत के बाद होनेवाले दाह संस्कार के साथ भी पंडो द्वारा भद्दा मजाक किया जा रहा है.
यूपी-बिहार इन दोनों ही राज्यों में शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ साथ पूरे सरकारी तंत्र के निजीकरण के चलते सरकारी नियंत्रण लगभग खत्म हो गया है. यहीं वजह है कि अस्पतालों, स्कूल से लेकर श्मशान गृहों तक में लूट होती दिख रही है.” वही पंडे-पुजारियों द्वारा हिंदुओं के साथ जुल्म की इंतेहा हो रही है. हिंदू खतरें में है. यही कारण है डेड बॉडीज बहती जा रही है मोदी-योगी तथा नितीश कुमार के असंवेदनशील रवैये तथा पंडे-पुजारियों के लूट की गवाही है.
असीम अब्बासी की एक कविता है वो लिखते है
जिस कत्तल का कही कोई गवाह नहीं
वो कत्तल शहरों में इन दिनों गुनाह नहीं