नई दिल्ली: संसद की अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली (एम्स) में एससी/एसटी समुदायों में अनुभवी, उचित पात्रता और योग्यता उम्मीदवार होने के बावजूद नौकरियों में शामिल नहीं किया जा रहा है, ऐसा लोकसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा है. समिति ने दिल्ली एम्स में शिक्षक के 367 पद खाली होने का ब्यौरा देते हुए, इन्हें तीन महीने के भीतर भरे जाने की सिफारिश और सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण की भी वकालत की है. साथ ही इन पदों को भरने की अवधी तय करते हुये इसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय संसद के दोनों सदनों में प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने की तारीख से 3 महीने के भीतर कार्य योजना प्रस्तुत करने के लिये भी कहा है.
अनुसूचित जाति/जनजाति के विकास में स्वायत्त इकाइया और संस्थानों की भूमिका पर अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण संबंधी संसदीय समिति की 15वीं रिपोर्ट में एम्स पर ध्यान केंद्रित किया गया है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एससी/एसटी उम्मीदवारों में उचित पात्रता, योग्यता और अनुभव होने के बावजूद देश के प्रमुख मेडिकल कॉलेज में पूरी तरह से संकाय सदस्यों के रूप में शामिल नहीं किया जा रहा है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों के खिलाफ पक्षपात को देखते हुए संसदीय समिति ने रिक्त एससी/एसटी आरक्षित पदों को भरने, छात्रों के नाम पर पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन न करने की सिफारिशें कीं. साथ ही कहा कि सफाई कर्मचारी, ड्राइवर, डेटा एंट्री ऑपरेटर जैसे क्षेत्र के श्रमिकों को आउटसोर्स करना बंद करें और संस्थान के सामान्य निकाय में अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को शामिल करें. अनौपचारिक आधार पर अस्पताल में काम करने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों के कनिष्ठ कर्मचारियों का चयन उस समय नहीं किया गया जब पदों को नियमित किया जा रहा था.
अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति के अध्यक्ष सांसद किरीट सोलंकी ने लोकसभा में रिपोर्ट प्रस्तुत किया. इस रिपोर्ट में कहा है कि एम्स में कुल 1,111 पदों में से, 275 सहायक प्रोफेसर और 92 प्रोफेसर के पद रिक्त हैं.
समिति के सिफारिशे एवं अपेक्षायें –
- भविष्य में सभी मौजूदा रिक्त पदों को भरते वक्त अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित किसी भी पद को किसी भी परिस्थिति में छह महीने से अधिक समय तक खाली नहीं रखा जाना चाहिये.
- सरकार के बार-बार ‘स्टीरियोटाइप’ जवाब को स्वीकार करने के लिए समिति इच्छुक नहीं है, कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिला क्योंकि उसने सही तस्वीर पेश नहीं की है.
- अनुसूचित जाति/जनजाति के उम्मीदवार जो समान रूप से उज्ज्वल और योग्य हैं, उन्हें पक्षपातपूर्ण मूल्यांकन के कारण ‘उपयुक्त’ नहीं घोषित किया जाता है. इस मुद्दे को हल करने के लिए संस्थान की चयन समिति में एससी/एसटी विशेषज्ञ और अध्यक्ष शामिल करने के निर्देश भी दिये.
- सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में आरक्षण नहीं देने के कारण अनुसूचित जाति/जनजातियों के फैकल्टी उम्मीदवारों को अभूतपूर्व और अनुचित रूप से वंचित रखा जाता है.
- सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में अनारक्षित सदस्यों का एकाधिकार होता है. इसलिए आरक्षण नीति को छात्र और फैकल्टी स्तर पर सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि वहां भी अनुसूचित जाति/जनजाति फैकल्टी सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित हो.
- कि अनुसूचित जाति/जनजाति के चिकित्सकों एवं छात्रों को विदेश में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भेजने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित किया जाए ताकि सभी सुपर-स्पेशियलिटी क्षेत्रों में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व स्पष्ट रूप से देखा जा सके.
- समूह ग के पदों/निचले पदों को नियमित रूप से भरे जाने के बदले आउटसोर्स/संविदा पर रखे जाने को गरीबों को रोजी-रोटी से वंचित करने के समान बताते हुए समिति ने कहा कि सफाईकर्मी, चालक, डेटा ऑपरेटर आदि जैसे गैर-मुख्य क्षेत्रों में भी संविदात्मक/आउटसोर्स नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए.
- संविदा नियुक्ति की नीति इन ठेकेदारों के माध्यम से दलित वर्गों के शोषण की गुंजाइश पैदा करती है, इसलिए, समिति सिफारिश करती है कि सरकार किसी भी वर्ग/श्रेणी के वंचितों के इस तरह के शोषण को रोकने के लिए एक तंत्र विकसित करे और इस संबंध में उठाए गए सुधारात्मक कदमों की जानकारी समिति को दी जाए.
- वर्तमान में एम्स के साधारण निकाय में भी अनुसूचित जाति/जनजाति का कोई सदस्य नहीं होने के तथ्य को गंभीरता से लेते हुए समिति ने कहा कि यह वास्तव में अनुसूचित जातियों/जनजातियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया और नीतिगत मामलों का हिस्सा बनने और साथ ही सेवा मामलों में अनुसूचित जाति/जनजातियों के हितों की रक्षा करने के अपने वैध अधिकारों से वंचित करता है.
- समिति की यह वैध अपेक्षा है कि सेवा मामलों में अनुसूचित जाति/जनजाति के हितों की रक्षा के साथ-साथ एम्स प्राधिकरण तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बनाई जा रही नीति की निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए एम्स के साधारण निकाय में उनका सदस्य होना चाहिए.
- विभिन्न एम्स में एमबीबीएस और अन्य स्नातक-स्तर तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जाति/जनजातियों के दाखिले का समग्र प्रतिशत अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत के अपेक्षित स्तर से बहुत कम है.
- इसलिए, समिति पुरजोर सिफारिश करती है कि एम्स को सभी पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए आरक्षण के निर्धारित प्रतिशत को सख्ती से बनाए रखना चाहिए.
- एससी/एसटी उम्मीदवारों ने थ्योरी पेपर में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन तीन पेशेवर परीक्षाओं के प्रैक्टिकल में असफल रहे. संसदीय समिति ने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से एससी/एसटी छात्रों के प्रति पूर्वाग्रह को रेखांकित करता है.’
-अनुसूचित जाति/जनजाति के संकाय सदस्यों को प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए और परीक्षकों को छात्रों के नाम पूछने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए ताकि यह पता लगाया जा सके कि छात्र किस समुदाय का है. - वास्तव में इन अनुचित मूल्यांकनों को हल करने के लिए सभी छात्रों को केवल एक फर्जी कोड नंबर का उपयोग करके परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिए.
- समिति द्वारा डीन परीक्षा को ऐसे छात्रों के मामलों की जांच करने और आगे की कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है. यह भी नोट किया गया कि एम्स के सामान्य निकाय में कोई एससी/एसटी उम्मीदवार नहीं थे. इसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति/जनजाति को निर्णय लेने की प्रक्रिया और नीति मामलों का हिस्सा बनने और उनके हितों की रक्षा करने के उनके वैध अधिकारों से वंचित करना है.
- एससी/एसटी सदस्यों को प्रतिनिधित्व के लिए सामान्य निकाय में उपस्थित होना चाहिए.
- समिति अनुशंसा करती है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और एम्स को सामूहिक रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति के संकाय सदस्यों, कर्मचारियों/छात्रों की शिकायतों को उनकी संतुष्टि तक हल करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए.
- समिति इस तथ्य पर न्याय संगत रूप से पुन: जोर देती है कि अनुसूचित जाति/जनजातियों के लिए और अधिक अवसर सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रतिशत बनाए रखना