पूरा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ का उत्सव ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है. पीएम मोदी ने लोगों ने 2 अगस्त से लेकर 15 अगस्त तक अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के प्रोफाइल फोटो में तिरंगा लगाने का आग्रह किया है. लेकिन आरएसएस तथा उसके नेताओं ने ने अबतक अपने प्रोफाइल फोटो या डीपी नहीं बदले है. जिस आरएसएस ने कभी आजादी के आंदोलन में सहभाग नहीं लिया, कभी अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया उसके बारे में अब देश के लोगों ने सवाल उठाएं है.
प्रो. तथा सीनियर जर्नालिस्ट दिलीप मंडल ने ट्विटर पर लिखा हैभक्त अपनी डीपी यानी प्रोफ़ाइल पिक्चर बदल कर वहाँ राष्ट्रीय झंडा लगा रहे हैं। भक्तों के पापा लोग नहीं बदल रहे हैं। @DrMohanBhagwat, @SureshSoni1925, @DattaHosabale, @SureshBJoshi
अगले ट्वीट में उन्होंने लिखा है प्रिय @narendramodi जी, पहले अपने मालिक @DrMohanBhagwat से प्रोफ़ाइल पिक्चर चेंज करवाओ। इनसे रिक्वेस्ट कीजिए कि तिरंगा लगाएँ। मुझसे उसके बाद बोलना। मैं सोचूँगा। आख़िर आप प्रधानमंत्री हैं हमारे। मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ पर तिरंगा न लगाने के लिए
भागवत की कड़ी निंदा करता हूँ।
आगे के ट्वीट में वो लिखते है प्रधानमंत्री @narendramodi की औक़ात यानी हैसियत नहीं है कि @RSSorg से डीपी यानी प्रोफ़ाइल पिक्चर बदलवा कर तिरंगा लगवा दे। RSS मालिक है उनका। सेवक तो हमेशा सेवक होता है। RSS ट्विटर और फ़ेसबुक पर नरेंद्र मोदी को फ़ॉलो भी नहीं करता। समझ
रहे हैं न कि RSS की नज़र में मोदी की कितनी हैसियत है।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार पांडेय ने लिखा है देखिएगा आर एस एस को भी अपनी DP बदलनी पड़ेगी। झख मारकर तिरंगा लगाना पड़ेगा। याद रखिए आरएसएस में नहीं ‘संघे शक्ति कलियुगे’ दबाव बनाए रखिए। सवाल पूछते रहिए।
ट्राइबल आर्मी के हंसराज मीणा ने लिखा है देख रहा है विनोद, कैसे @RSSorg ने अभी तक अपने अकाउंट पर तिरंगा नहीं लगाया।
सोशल मीडिया पर ये टिप्पणियाँ इसलिए आ रही हैं क्योंकि आरएसएस मुख्यालय पर ही 2002 से पहले तिरंगा झंडा नहीं फहराया जाता था। कुछ लोगों ने जब गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहरा दिया था तो उनपर मुक़दमा चला था। अगस्त 2013 को नागपुर की एक निचली अदालत ने वर्ष 2001 के एक मामले में दोषी तीन आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया था। इन तीनों आरोपियों बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी का जुर्म कथित रूप से सिर्फ़ इतना था कि वे 26 जनवरी 2001 को नागपुर के रेशमीबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में घुसकर गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराने के प्रयास में शामिल थे।
इसी को लेकर सवाल पूछा जाता है कि क्या 2002 के पहले तिरंगा भारत का राष्ट्रध्वज नहीं था या फिर आरएसएस खुद अपनी आज की कसौटी पर कहें तो देशभक्त नहीं था?
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर जब दिल्ली के लाल किले से तिरंगे झण्डे को लहराने की तैयारी चल रही थी आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी मुखपत्र (ऑर्गनाइज़र) के 14 अगस्त, 1947 वाले अंक में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे के चयन की खुल कर भर्त्सना की थी। आरएसएस के अंग्रेजी अखबार, ‘ऑर्गनाइज़र’ ने अपने 14 अगस्त, 1947 के अंक में लिखा था- “भाग्य की वजह से सत्ता में आने वाले लोग हमारे हाथों में तिरंगा दे रहे हैं, लेकिन हिन्दू कभी भी इसे स्वीकार नहीं करेंगे। तिरंगा हिंदुओं का सम्मान नहीं करता।” संघ के मुखपत्र ने लिखा था- ‘तिरंगे के तीन रंग अपने आप में एक बुराई है, और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित रूप से बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा। यह देश के लिए हानिकारक है।’