कबीर की झीनी झीनी बीनी चदरिया ! कबीर ने चादर को ज्यों की त्यों रख दी…..
” दास कबीर जतन करि ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया। “वहीं चादर सुर, नर और मुनि ने मैला कर दी…..” सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी कै मैली कीनी चदरिया।” आखिर कबीर की चादर मैली क्यों नहीं हुई? दरअसल कबीर की चादर अष्टांग मार्ग के चरखे पर बना हुआ सूत से बुनी थी।” आठ कँवल दल चरखा डोलै। “ये आठ कँवल दल का चरखा क्या है?..…वहीं अष्टांग मार्ग का प्रतीक ….बुद्धिजम में चक्र के भीतर आठ पँखुड़ियों वाला कमल….आठ कँवल दल चरखा।
कबीर की चादर की बुनावट – बनावट कैसी है?” पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया। “कबीर की चादर बुद्धिज्म के भौतिक और मानसिक पाँच तत्वों से बनी है– रूप, संज्ञा, वेदना, विज्ञान और संस्कार……तीन गुणों से बनी है —प्रज्ञा, शील और समाधि.…इसीलिए कबीर ने ज्यों की त्यों बगैर मैला किए चादर रख दी।
यह निर्वाण की अवस्था है….जीते – जिंदगी जन्म – मरण के चक्कर से कोसों दूर ….न राग न द्वेष……इसीलिए ” ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया। “यदि कबीर की चादर सत्व, रज और तम से बनी होती तो मैली होनी तय थी….मिट्टी आदि से बनी होती तो मिट्टी में मिलनी तय थी….फिर कबीर अपनी चादर ज्यों की त्यों नहीं रख पाते।