राजेश चन्द्रा
पूरे विश्व में कुछ व्यक्तित्व धम्म ध्वजा की तरह हैं जिनके कारण धरती के सभी महाद्वीपों पर धम्म पताकाएं फहरा रही हैं। असंशयरूप से परम पावन दलाई लामा उनमें कदाचित सर्वोपरि हैं। उनकी वैश्विक लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण कि उनके द्वारा नोबेल पुरस्कार का सम्मानित होना है। इस लोकप्रियता से बुद्ध के धम्म की लोकप्रियता में अनायास ही विस्तार हुआ है, हो रहा है। अलावा परम पावन दलाई लामा के अन्य धम्म ध्वजा जैसे वैश्विक व्यक्तित्व हैं – गुरू शेंग येन, ताईवान (22 जनवरी’1931-03 फरवरी, 2009), पूज्य उर्गेन भन्ते संघरक्षित, इंग्लैंड (26 अगस्त’1925-30 अक्टूबर’2018), वियतनामी बौद्ध भिक्षु पूज्य तिक न्हात हन्ह (11 अक्टूबर’1926-22 जनवरी’2022), विपस्सना गुरू सत्य नारायण गोयन्का (30 जनवरी’1924-29 सितम्बर’2013), भारत, डॉ. के श्री धम्मानन्द, श्रीलंका (18 मार्च’1919-31 अगस्त’2006)।
ये सभी ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनका धम्म के क्षेत्र में वैश्विक प्रभाव है, सार्वभौमिक पहचान है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि उपरोक्त लगभग सभी व्यक्तित्वों ने एक बौद्ध के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ को सम्बोधित किया है।
विगत दिनों बौद्ध जगत में पूज्य तिक न्हात हन्ह अपने स्वास्थ्य को लेकर खबरों में थे। पूरे विश्व में लाखों की संख्या में उनके प्रशंसक और अनुयायी हैं। पूज्य तिक न्हात हन्ह मूलतः वियतनाम से हैं तथा जैसे परमपावन दलाई लामा भारत में शरणार्थी जीवन जीते हुए धम्म को योगदान दे रहे हैं ऐसे ही तिक न्हात हन्ह फ्रांस ने फ्रान्स में शरणार्थी जीवन जीते हुए धम्म व ध्यान प्रचार में आजीवन योगदान दिया।
मूलत: वियतनाम में जन्मे तिक न्हात हन्ह ने वियतनाम युद्ध के समय उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच अपनी जान जोखिम में डाल कर राहत कार्यों में हिस्सा लिया तथा शान्ति व सौहार्द का अथक प्रयास किया। उनके करूणामय कार्यों से प्रभावित हो कर अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग जूनियर उन्हें वर्ष 1967 के शान्ति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया।
रहस्यदर्शिता, विद्वता, समाजसेवा, लेखन, कवित्व, ध्यान गुरु का अद्भुत संगम पूज्य तिक न्हात हन्ह विश्व भर के अपने लाखों अनुयायियों के बीच श्रद्धा व प्रेम से ‘थाय’ कह कर सम्बोधित किये जाते रहे हैं। वियतनामी भाषा में ‘थाय’ का अर्थ ‘गुरू’ होता है।
वियतनाम के तिएप हिएन संघ (Tiep Hien Order) में सोलह वर्ष की आयु में भिक्षु दीक्षा लेने के उपरान्त से ही तिक न्हात हन्ह अपने व्यक्तित्व व कृतित्व में अनूठे व क्रान्तिकारी रहे हैं। वियतनाम युद्ध के समय राहत कार्यों में अपने सक्रिय योगदान के कारण जहाँ आमजनों के बीच वे आदरणीय व पूजनीय हो गये वहीं उनके निष्पक्ष व्यक्तित्व के कारण सरकारें रूष्ट हो गयीं और उन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 40 वर्ष की आयु में उन्हें अपनी मातृ-भूमि छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने फ्रान्स को अपनी शरण स्थली बना कर ‘प्लम विलेज’ के रूप में एक आध्यात्मिक केन्द्र बनाया है जहाँ प्रकृति की मनोरम गोद में संसार भर के ध्यान पिपासु आकर तृप्त होते हैं, अशान्त मन शान्त होते हैं, रूग्ण मन स्वस्थ होते हैं, दुःखी मन सुखी होते हैं, स्वार्थी मन सेवक होते हैं, द्वेषी मन प्रेमी होते हैं। इस आध्यात्मिक केन्द्र को शरणार्थियों का पुनर्वास केन्द्र भी कहा जा सकता है जहाँ उन्हें भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, आश्रय, मानस-परामर्श इत्यादि उपलब्ध कराया जाता है। यह केन्द्र विश्व भर के शरणार्थियों का पुनर्वास केन्द्र है।
विश्व भर में ‘शान्तिदूत’ के रूप में विख्यात तिक न्हात हन्ह अपनी ‘चलित ध्यान विधि’ के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे हैं, जिसके अन्तर्गत वे दैनिक चर्या में व्यस्त रहते हुए ध्यानमय कार्य करने का उपदेश देते रहे हैं, सिखाते रहे, इसी रूप में शिविर लेते रहे, यथा चाय-ध्यान, ड्राइविंग-ध्यान, कार्यालय-ध्यान इत्यादि शीर्षकों से वे अपने अनुयायियों को सजग रहते हुए चाय पीना, ड्राइविंग करना, कार्यालय के कार्यों को करना सिखाते रहे हैं।वे वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में वॉन हान्ह बुद्धिस्ट युनिवर्सिटी (साइगॉन) के संस्थापक हैं और उन्होंने कोलम्बिया तथा सनवोर्ने विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है।
विश्व में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे बुद्धिजीवी, विद्वान, वैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी, ध्यान प्रेमी, आध्यात्मिक जिज्ञासु, श्रद्धालु युवक-युवतियाँ हैं जो घोषित रूप में बौद्ध नहीं हैं लेकिन उनका झुकाव बुद्ध व उनके धम्म की ओर है। ऐसे समुदाय प्राय: ‘प्रतिबद्ध बौद्ध’ अथवा ‘सक्रिय बौद्ध’ या ‘संलग्न बौद्ध'(Engaged Buddhists) के रूप में पहचान पाते जा रहे हैं। उनके मन अपने पारम्परिक धर्म व सम्प्रदायों से उखड़े हुए हैं तथा वे तेजी से अपना भावनात्मक व बौद्धिक आश्रय बुद्ध के धम्म में तलाश रहे हैं और बौद्ध गतिविधियों में संलग्न हो रहे हैं, विशेषकर बोधिसत्व आदर्श के लोकहितकारी सामाजिक सेवा के कार्यों में। इस नाते वे ‘प्रतिबद्ध बौद्ध’ अथवा ‘सक्रिय बौद्ध’ या ‘संलग्न बौद्ध’ कहे जा रहे हैं।
तिक न्हात हन्ह ‘प्रतिबद्ध बौद्धों’ अथवा ‘सक्रिय बौद्ध’ यानी ‘संलग्न बौद्ध’ के बीच अत्यन्त लोकप्रिय हैं और उनके लिए उन्होंने शान्तिपूर्ण ध्यानमय समाजसेवा की ध्यान विधियाँ विकसिक की हैं जो कि बुद्ध धम्म की मौलिक ध्यान पद्यतियों, आनापानसति, मैत्री-भावना, विपस्सना को समावेशित किये हुए हैं। ये हैं दैनिक जीवन में अध्यात्म, समाज के कोलाहल के बीच में अध्यात्म, समाज के कोलाहल के बीच ध्यान, न कि ध्यान शिविर वाला ध्यान। पूज्य थाय की देशना है कि दिन-प्रतिदिन का जीवन ध्यानमय होने से, प्राणिमात्र के प्रति मैत्रीपूर्ण होने से, न केवल हम, हमारा परिवार बल्कि पूरा समाज लाभान्वित होता है।
दिसम्बर, 2000 में पूज्य थाय ने व्हाईट हाउस वर्ल्ड समिट कान्फ्रेस, अमेरिका को सम्बोधित किया तथा उन्हें द गोर्बाचोव वर्ल्ड फोरम, रूस, वर्ल्ड इकॉनिमिक समिट, स्विटजरलैण्ड और संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मंचों पर भी देशना के लिए सादर आमंत्रित किया जा चुका है। अब तक 100 से अधिक शीर्षकों में उनकी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में उनकी पुस्तकों के अनुवाद हो चुके हैं। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक ‘ओल्ड पाथ व्हाईट क्लाऊड्स’ जो कि हिन्दी में ‘जँह जँह चरन पड़े गौतम के’ शीर्षक से प्रकाशित है। औपन्यासिक शैली में लिखी गयी इस पुस्तक में भगवान बुद्ध के जीवन को सुललित रूप में सजीवता के साथ उकेरा गया है। इस पुस्तक के आधार पर हालीवुड में भगवान बुद्ध पर एक फिल्म का निर्माण भी हो रहा है।
उनके ‘शान्त चारिका ध्यान’ ने विश्व भर का ध्यान आकर्षित किया है। जब भी किसी देश के किसी भी शहर में वे ‘शान्त चारिका ध्यान’ करते हैं तो उतनी देर के लिए पूरे शहर का यातायात जैसे ठहर जाता है और हजारों पग उनका शान्त अनुगमन करने लगते हैं- कोलाहल, तनाव, हिंसा, व्यस्तता, अवसाद जैसे सब कुछ उतनी देर के लिए ठहर जाता है।
फ्रांस के ‘प्लम विलेज’ में उन्होंने भिक्खुओं-भिक्खुनियों, उपासक-उपासिकाओं का एक समर्पित संघ बनाया है, जिसके साथ वे दो बार भारत की यात्रा कर चुके हैं- वर्ष 1996 में और वर्ष 2008 में। दोनों बार वे भारत के राजकीय अतिथि रहे तथा भारत की संसद को भी सम्बोधित किया। अक्टूबर, 2008 में प्रधानमंत्री कार्यालय साउथ ब्लाक से इण्डिया गेट तक ‘शान्त चारिका ध्यान’ में थाय के साथ मंत्री मुख्यमंत्री, सांसद सहित प्रसिद्ध लेखक, कवि, पत्रकार, वैज्ञानिक तक शामिल हुए।
आलू बुखारा के वृक्षों से आच्छादित 80 एकड़ में फैला फ्रांस का ‘प्लम विलेज’ एक तरह से तिक न्हात हन्ह का वह स्वप्निल विहार है जो किसी एक जाति, धर्म, लिंग, नस्ल राष्ट्र के लिए नहीं वरन मानवमात्र की शान्त-मनोरम स्थली है। वहाँ कोई भी आकर रह सकता है, पूज्य थाय की अपार्थिव सघन प्रशान्ति को स्वयं में आत्मसात कर सकता है।
22 जनवरी’2022 को वे अपने जन्मदेश वियतनाम में दिवंगत हुए।