BSP अध्यक्ष मायावती न तो बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए में है और न विपक्ष के गठबंधन की हिस्सा है. ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि मायावती इस नए फॉर्मूले को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए काम कर रही है.बसपा अध्यक्ष मायावती ने हाल ही में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन का ऐलान किया है.
तीसरे मोर्चा के जरिए सियासी खेल पलट
एबीपी न्यूज़ में प्रकाशित खबर के अनुसार बहुजन समाज पार्टी के लिए ऐसे करना कोई नई बात नहीं है. राजनीतिक परिवेश में ऐसे कई हालात बने है जब मायावती एक अलग गठबंधन के साथ मिलकर पूरी सियासी खेल पलट चुकी हैं. 38 साल पहले 1984 में बसपा का गठन हुआ था..उत्तर प्रदेश में 2007 के चुनाव में भारी बहुमत के साथ बसपा ने अकेले अपने दम पर सरकार बनाई. इसके पहले और बाद में भी कई मौके आए जब बहुजन समाज पार्टी कई राज्यों में किंगमेकर भी बनी.
उत्तर प्रदेश में जब राम जन्मभूमि विवाद हुआ, जिसके बाद बीजेपी को राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी थी. उस समय ये बीएसपी ही थी जिसने 1993 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके बीजेपी को उत्तर प्रदेश से उखाड़ कर रख दिया था. उत्तर प्रदेश में हुए 1993 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 55 सीटों का फायदा हुआ और बीएसपी 67 सीटों पर जीत कर सामने आई थी.
बसपा को किसी से गठबंधन से परहेज नहीं
बहुजन समाज पार्टी आज तक लगभग सभी पार्टियों के साथ गठबंधन में रह चुकी है. उत्तर प्रदेश में साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया.हालांकि इस चुनाव में बसपा को सीटों के लिहाज से तो फायदा नहीं हुआ लेकिन वोट प्रतिशत में बीएसपी का बहुत इजाफा हुआ था. बीएसपी को इस चुनाव में 66 सीटें मिली और करीब 18 प्रतिशत तक वोट शेयर प्राप्त हुआ था. इसके बाद बीएसपी ने साल 1997 के चुनाव में बीजेपी के साथ सरकार का गठन किया था. बीजेपी के साथ बसपा ने लेकिन कभी भी चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं किया.
दलित-मुस्लिम-OBC समीकरण पर हो सकती है बात
लोकसभा चुनाव की बात करे तो बीएसपी को साल 2009 के आम चुनाव में कुल 20 सीटें हासिल हुई थी. जबकि उस समय उत्तर प्रदेश से बीजेपी को केवल 10 सीटें ही मिली थी. हालांकि उसके बाद 2014 चुनाव में पार्टी शून्य पर जरूर सिमट गई थी लेकिन पिछली लोकसभा चुनाव में पार्टी 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. राज्य में समाजवादी पार्टी को केवल पांच सीट मिली थी.
अब ऐसे में चर्चा यह है कि बीएसपी अपने पारंपरिक दलित वोटरों के साथ मुस्लिम तथा ओबीसी मतदाताओं को एक साथ लाकर एक अलग समीकरण तैयार करने में लगी है. जिसके लिए वो एआईएमआईएम पार्टी के प्रमुख ओवैसी के साथ गठबंधन कर सकती है. साथ ही बीएसपी तीसरे मोर्चे के लिए उन सभी दलों को साथ लेकर आ सकती है जो एनडीए और इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं है. ऐसे में कहीं अगर हंग पार्लियामेंट की स्थिति होती है जो ये मोर्चा अहम रोल में दिखाई देगी. वर्तमान में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौडा की पार्टी जनता दल (सेक्युलर), नविन पटनाइक की पार्टी बीजू जनता दल समेत चंद्राबाबू नायडू की टीडीपी, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी समेत कई ऐसी पार्टियां है जो तीसरे मोर्चे में शामिल हो सकती है.