बिहार में तीन सालों से SC-ST छात्रों को मिलने वाली पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप बंद है. मीडिया में मामला आने के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के शिक्षा विभाग को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति योजना के तहत पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप जल्द से जल्द फिर से शुरू करने का निर्देश दिया है. बता दें कि सरकार का कहना है कि पिछले तीन सालों से केंद्र की प्रमुख कल्याण योजना के लिए कोई आवेदन नहीं मिला है. साथ ही अधिकारी एप्लीकेशन न मिलने के लिए ‘नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल में तकनीकी दिक्कत’ को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
तकनिकी दिक्कत के बहाने की वजह से छात्रों को काफी परेशानी हो रही है। हाल ये है कि इस स्कॉलरशिप के भरोसे कर्ज लेकर पढ़ाई करने वाले छात्र कर्ज के बोझ तले दब गए हैं। अब बिहार में विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर हमलावर हो गया है। इस मामले को लेकर हो रही किरकिरी के बाद अब जाकर सरकार जागी है। बिहार सरकार के अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण मंत्री संतोष सुमन ने वादा किया है कि इसी 15 अगस्त तक छात्रवृत्ति का मामला सुलझा लिया जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने गत 5 वर्षों से एससी-एसटी वर्गों की स्कॉलरशिप बंद कर लाखों गरीब छात्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया है। सरकार से पूछने पर वह इस मसले पर पूर्णत: अनभिज्ञता प्रकट करती है। बाकी प्रदेशों में केंद्र समर्थित यह स्कॉलरशिप अब भी मिल रहा है।
बिहार में अनुसूचित जाति समुदायों के लोग जनसंख्या का 16% और अनुसूचित जनजाति के लोग 1% हैं, देखा जाए तो अनुमानित 5 लाख छात्र हर साल इस छात्रवृत्ति के लिए योग्य हैं. लेकिन बिहार में ज्यादातर एससी/एसटी छात्रों को छह साल से इससे वंचित रखा गया है।
पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप ऐसे SC/ST छात्रों के लिए है, जिनकी सालाना पारिवारिक आय 2.5 लाख तक है. इस स्कॉलरशिप से देशभर में 60 लाख छात्रों को लाभ मिलता है।
बिहार सरकार पर कई छात्रों ने आरोप लगाया है कि क्लास 12 से पोस्टग्रैजुएट लेवल की पढ़ाई, टेकनिकल और प्रोफेशनल कोर्स के लिए फीस पर 2,000 रुपये से 90,000 रुपये की सीमा लगाकर योजना का पूरा लाभ उठाने की से रोका जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बिहार सरकार के SC/ST कल्याण विभाग ने 2016 में सरकारी और निजी कॉलेजों में फीस का अंतर बताते हुए फीस की ऊपरी सीमा तय कर दी थी. ये सालाना 2000 रुपये से 90,000 रुपये तक थी. छात्रों ने फीस तय किए जाने का विरोध करते हुए दावा किया कि इससे परिवारों पर वित्तीय बोझ पड़ेगा और उन्हें उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल कोर्स रोकना पड़ेगा.
बता दें कि इस स्कीम के तहत शिक्षा, प्रोफेशनल या तकनीकी कोर्स, मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्सेस के लिए स्कॉलरशिप मिल सकती है.