हजारों साल पहले सम्राट अशोक ने धम्म का अनुवाद रिलिजन नहीं कराया था…..
अशोक को पता था कि बौद्ध कोई धर्म नहीं है बल्कि धम्म है…..
इसीलिए इतिहासकार सम्राट अशोक के धम्म को पहचानने में चूक करते रहे हैं, कारण कि वे धम्म को धर्म के रूप में परख करते हैं, जबकि सम्राट अशोक ने किसी धर्म को नहीं बल्कि धम्म को अपनाया था….
इतिहासकारों द्वारा परख में हुई इस चूक के कारण ही किसी ने अशोक द्वारा अपनाए गए धम्म को सार्वभौम धर्म माना है तो किसी ने राजधर्म तो फिर किसी ने ब्राह्मण धर्म तो फिर किसी ने बौद्ध धर्म बताया है…..
अशोक द्वारा अपनाया गया धम्म कोई कर्मकांडों पर आधारित पूजा – पाठ की पद्धति नहीं थी बल्कि मानव को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जीवन जीने की पद्धति थी…… एक नैतिक थ्योरी जो समाज के संदर्भ में व्यक्ति से संबंधित थी, यदि इतिहासकार समझ लें कि बौद्ध कोई धर्म नहीं बल्कि धम्म है तो अशोक के धम्म को परखने में सुविधा होगी वरना सम्राट अशोक का धम्म कभी पकड़ में नहीं आएगा….