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गुरुपूर्णिमा : भगवान बुद्ध ने आज ही ‘धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त’ का उपदेश दिया था

गुरुपूर्णिमा : भगवान बुद्ध ने आज ही  ‘धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त’ का उपदेश दिया था

आज आषाढ़ी पूर्णमासी है, आज का दिन बौद्ध धम्म के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि आज के दिन ही भगवान बुद्ध ने इसिपतन, वाराणसी में ‘धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त’ का उपदेश दिया था। आज आषाढ़ी पूर्णिमा के पावन दिन राजकुमार श्रमण सिद्धार्थ से सम्यक संबुद्ध बने भगवान बुद्ध ने इसिपतन (सारनाथ) में पञ्चवग्गीय श्रमणों को “धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्त” का उपदेश दिया था। आज के ही दिन से बौद्ध धम्म की शुरुआत हुई थी। इसलिए आज का दिन वैशाख पूर्णिमा की तरह ही पावन और मंगलकारी-कल्याणकारी है। आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन विश्व बौद्ध परंपरा में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई हैं। यह तीनों घटनाएं राजकुमार सिद्धार्थ के जीवन से जुड़ी हुई हैं।

1- जिसमें की पहली घटना उनके जन्म के समय की है। जब आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन उन्होंने अपनी मां के महामाया देवी के गर्भ में प्रवेश (पटिसंधि ग्रहण) किया था और उनकी मां ने इसी दिन की रात्रि में एक स्वप्न देखा था कि जिसमें श्वेत वर्ण का हाथी उनकी दाहिनी कुक्षी को छेद रहा है।

2- दूसरी घटना उस समय की है जब उन्होंने समस्त प्राणियों के दुखों को दूर करने के लिए, आषाढ़ी पूर्णिमा की रात में अपने राजमहल से ‘महाभिनिष्क्रमण’ किया था। फिर वे अपने प्रिय अश्व कंथक और अपने सबसे स्नेही सारथी छन्न के साथ बैठकर अपने पिता महाराजा शुद्धोधन के राजपाट को त्यागकर चले गए थे। आज ही के दिन उन्होंने अपने समस्त राजसी वस्त्र-शस्त्र और मुकुट-आभूषण उतारकर छन्न को दे दिए थे और उन्होंने अपनी ही तलवार से अपने सिर के लंबे राजसी बाल काट लिए थे। इसके बाद वह 6 वर्ष तक समस्त जम्बुद्वीप में सत्य की खोज में, सम्यक संबोधि की खोज में घूमते रहे। उन्होंने उस समय प्रचलित विभिन्न ज्ञान-अनुशासनों को बहुत ही निकट से देखा, उनका बहुत विस्तार से और पूरी निष्ठा के साथ अध्ययन किया। वे उस समय के सबसे प्रतिष्ठित एवं विद्वान आचार्यों से भी मिले, लेकिन उन्हें वे मार्ग मिथ्या लगे। इसके अलावा उन्होंने उस समय की समस्त कठिन साधनाओं एवं तपश्चर्यओं को किया। उन्हें वैशाख की पूर्णिमा के दिन सम्यक संबोधि (ज्ञान प्राप्त) प्राप्त हुई।

3- तीसरी घटना के रूप में भगवान बुद्ध ने आषाढ़ी पूर्णिमा के पावन दिन इसिपतन (सारनाथ) में पञ्चवग्गीय श्रमणों को “धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्त” का उपदेश दिया था और आज के ही दिन से बौद्ध धम्म की शुरुआत हुई थी। इसलिए जिस प्रकार वैशाख की पूर्णिमा त्रिविध पावन है, उसी प्रकार आषाढ़ी पूर्णिमा भी त्रिविध पावन है। आज के ही दिन से बौद्ध भिक्षु अपना वर्षावास भी आरंभ करते हैं, जो तीन माह तक चलता है।

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