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भिक्खुओं! जो मेरी सेवा करना चाहता है, वह रोगी की सेवा करें । – तथागत बुद्ध

भिक्खुओं! जो मेरी सेवा करना चाहता है, वह रोगी की सेवा करें । – तथागत बुद्ध

एक बार तथागत बुद्ध भिक्खु आनंद के साथ एक बड़े विहार में भिक्खु निवास का निरीक्षण कर रहे थे. एक कमरे में एक भिक्खु अपने मल मूत्र में असहाय पड़ा

था I  तथागत बुद्ध ने पूछा ! “भिक्खु ! तुम्हे क्या कष्ट है ?

“भयंकर दस्त से पीड़ित हूँ भगवंत I “भिक्खु ! क्या दूसरे भिक्खु तुम्हारी

देखभाल नहीं कर रहे है?

“भन्ते ! मैंने भिक्खुओं की कभी कोई सेवा नहीं की थी इसलिए भिक्खु मेरी सेवा नहीं करते I

तब तथागत ने आनंद से कहा – आनंद ! पानी लाओ, मैं भिक्खु को नहलाऊंगा I

तथागत ने पानी डाला आनंद ने उस भिक्खु का पूरा शरीर धोया, साफ किया I

तथागत ने उसे सिर की ओर से उठाया, आनंद ने पैर से। दोनों ने मिलकर उसे बिस्तर पर लेटा दिया I

तब तथागत ने में भिक्खुओं को इकट्ठा कर पूछा-

“भिक्खुओं ! यहां तुम्हारी देखभाल के लिए किसी के माता पिता नहीं है। यदि तुम एक दूसरे की सेवा नहीं करोगे तो अन्य कौन करेगा? चाहे रोगी आचार्य, समकक्ष या शिष्य हो, सभी की सेवा करनी चाहिए। यदि नहीं करता है तो उसका दोष माना जाएगा I

“भिक्खुओं! इन पाच गुणों वाला भिक्खु, रोगी की सेवा योग्य होता है I

1.औषधि ठीक समय पर देने वाला I

2.अनुकूल व प्रतिकूल को समझकर अनुकूल औषधि देने वाला I

3.किसी लाभ की बजाय मैत्रीपूर्ण चित्त सेवा करने वाला I

4.मल मूत्र, थूक, उल्टी दस्त की सफाई में घृणा नहीं करने वाला I

5.कभी-कभी धम्म कथा सुना कर धम्म के प्रेरित और हर्षित करने वाला I

इसलिए भिक्खुओं ! हमेशा ध्यान रखो।

जो मेरी सेवा करना चाहता है वह रोगी की सेवा करें I

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