कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के स्कूलों में कक्षा 6 से 10 तक कन्नड और सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन को मंजूरी दे दी. इसके तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर से जुड़े अध्यायों हटा दिया.इसके साथ ही सभी स्कूल और कॉलेज में संविधान की प्रस्तावना को रोज पढ़ा जायेंगा।
सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस कदम को पिछले भारतीय जनता पार्टी शासन के तहत ‘इतिहास की विकृति’ और ‘पाठ्यक्रम के भगवाकरण’ को सुधारने का प्रयास बताया है. इसके अलावा सरकार पिछली भाजपा सरकार द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानून को भी रद्द करने की योजना बना रही है.
राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने कहा कि 2022 में भाजपा सरकार द्वारा पेश किए गए सभी बदलावों को पलट दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘पिछले साल उन्होंने जो भी बदलाव किए हैं, हमने उन्हें बदल दिया है और उससे पहले के सालों में जो कुछ भी था, उसे फिर से शामिल किया गया है. बच्चों के हित में हमने अब तक सबसे कम काम किया है. यह केवल कक्षा 6 से 10 तक कन्नड भाषा में और कक्षा 6 से 10 तक सामाजिक अध्ययन में है.’
मंत्री ने पिछले हफ्ते कहा था, ‘हमने हमेशा कहा है कि पाठ्यपुस्तकों को एक खास एजेंडा को बढ़ावा देने और गलत इतिहास के साथ युवा दिमाग को प्रभावित करने के लिए विकृत किया गया था. हम इसे ठीक करने की योजना बना रहे हैं.’
हटाए गए अध्यायों में दक्षिणपंथी विचारक चक्रवर्ती सुलिबेले, संस्कृत और कन्नड विद्वान बन्नान्जे गोविंदाचार्य पर अध्याय शामिल हैं.
इस बीच, शिक्षाविद् सावित्रीबाई फुले, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा उनकी बेटी इंदिरा गांधी को लिखे गए पत्र और बीआर आंबेडकर पर एक कविता, जिसे पिछले साल हटा दी गई थी, को बहाल कर दिया गया.
मामले से वाकिफ एक शख्स ने बताया कि सरकार सभी स्कूलों के लिए संविधान की प्रस्तावना पढ़ना अनिवार्य कर देगी. शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षा विभाग मौजूदा पाठ्यपुस्तकों को पूरी तरह खत्म करने के बजाय बदलावों को स्पष्ट करते हुए पूरक पाठ्यपुस्तकें लेकर आएगा.
29 मई को लगभग 30 शिक्षाविदों और लेखकों ने बेंगलुरु में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मुलाकात की और शिक्षा क्षेत्र में सुधार की विभिन्न मांगों के साथ एक ज्ञापन सौंपा था, जिसमें पाठ्यपुस्तकों में संशोधन और शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध शामिल है.
पिछले साल रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता वाली पाठ्यपुस्तक संशोधन समिति की लेखकों, शिक्षाविदों, धार्मिक नेताओं और विपक्षी दलों ने आलोचना की थी, जिन्होंने सरकार द्वारा नियुक्त पैनल पर सामाजिक सुधारकों और प्रगतिशील विचारकों के कार्यों को हटाकर पाठ्यक्रम के ‘भगवाकरण’ करने का प्रयास करने का आरोप लगाया था. चक्रतीर्थ और समिति के अन्य सदस्यों की साख को लेकर भी संदेह जताया गया था.
मई 2022 में कर्नाटक के कई विद्वानों और शिक्षाविदों ने राज्य सरकार की समितियों और निकायों से इस्तीफा देकर राज्य में चल रहे शिक्षा के ‘भगवाकरण’ का विरोध किया था.
विद्वानों और शिक्षाविदों द्वारा उठाई गई आपत्तियों में समाज सुधारक नारायण गुरु, स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सारा अबूबकर और पी लंकेश जैसे प्रगतिशील लेखकों के कार्यों पर अध्यायों को हटाना शामिल था. इस बीच, आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार पर अध्याय, दक्षिणपंथी विचारकों जैसे चक्रवर्ती सुलिबेले, गोविंदा पई और बन्नान्जे गोविंदाचार्य के कार्यों को शामिल किया गया था.
पूर्व शिक्षा मंत्री तथा बीजेपी नेता बीसी नागेश ने कहा, ‘वे मुसलमानों का वोट चाहते हैं. सिद्धारमैया सरकार हिंदुओं के खिलाफ है. वे हिजाब को फिर से पेश कर सकते हैं. वे अल्पसंख्यकों के वोटों को आकर्षित करना चाहते हैं और हर चीज का राजनीतिकरण करना चाहते हैं.’
पाठ्यक्रम में बदलाव के अलावा कर्नाटक सरकार पिछली भाजपा सरकार द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानून को भी रद्द करने की योजना बना रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा और कृषि विपणन मंत्री शिवानंद पाटिल ने कहा कि मंत्रिमंडल ने भाजपा सरकार द्वारा कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम में किए गए संशोधनों को निरस्त करने पर भी सहमति व्यक्त की है.
उन्होंने कहा, ‘इस संशोधन ने एपीएमसी में किसानों और व्यापार को चोट पहुंचाई है. एपीएमसी का मुनाफा, जो 2019-20 में 620 करोड़ रुपये था, 2022-23 में घटकर 194 करोड़ रुपये रह गया.’