ये दुनिया की एकमात्र ऐसी धार्मिक किताब है जो जन्मजात गैर-बराबरी को जायज़ ठहराती है और उसको बनाए रखने के लिए खौफनाक सज़ाओं का भी प्रावधान करती है।
25 दिसंबर 1927 को बाबा साहब और उनके समर्थकों ने जातिवाद और वर्णवाद को बनाए रखने वाली हिंदुओं की घटिया और भेदभाव से भरी किताब मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया था। मनुस्मृति ने दलितों और महिलाओं को इंसान का दर्जा तक नहीं दिया और उनके लिए जानवरों जैसी सज़ाओं का इंतज़ाम किया।
ये दुनिया की एकमात्र ऐसी धार्मिक किताब है जो जन्मजात गैर-बराबरी को जायज़ ठहराती है और उसको बनाए रखने के लिए खौफनाक सज़ाओं का भी प्रावधान करती है। लेकिन आज भी मनुवादी इस घटिया ग्रंथ को पूजते हैं। महाड़ सत्याग्रह के दौरान बाबा साहब और उनके समर्थकों ने मनुस्मृति को जलाया था जिसके बाद दुनिया भर के आंबेडकरवादी और समानता में यकीन रखने वाले लोग 25 दिसंबर को मनुस्मृति को जलाते हैं।