राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को लखनऊ में डॉ बाबासाहब आंबेडकर स्मारक एवं सांस्कृतिक केंद्र की आधारशिला रखी। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते उप्र कैबिनेट ने ऐशबाग में आंबेडकर स्मारक सांस्कृतिक केंद्र के निर्माण के लिए राज्य के सांस्कृतिक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। स्मारक ऐशबाग ईदगाह के सामने 5493.52 वर्ग मीटर नजूल भूमि पर बनेगा और इसमें डॉ अंबेडकर की 25 फीट ऊंची प्रतिमा भी होगी। 45.04 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले स्मारक में 750 लोगों की क्षमता वाला एक सभागार, पुस्तकालय, अनुसंधान केंद्र, चित्र गैलरी, संग्रहालय, एक बहुउद्देश्यीय सम्मेलन केंद्र, कैफेटेरिया, छात्रावास और अन्य सुविधाएं भी होंगी।
इस स्मारक के शिलान्यास पर बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपनी प्रतिक्रिया दी है उन्होंने कहा है कि विधानसभा चुनाव के नजदीक यूपी सरकार द्वारा बाबासाहेब के नाम पर सांस्कृतिक केंद्र का शिलान्यास कराना नाटक बाजी है। उन्होंने ट्विटर के माध्यम से कहा कि बसपा बाबासाहेब के नाम पर कोई केंद्र बनाने के खिलाफ नहीं है परंतु अब चुनावी स्वार्थ के लिए यह सब करना छलावा है।
यूपी सरकार अगर पहले यह काम कर लेती तो राष्ट्रपति आज इस केंद्र का शिलान्यास नहीं बल्कि उद्घाटन कर रहे होते। उन्होंने कहा कि छलावे, नाटकबाजी के मामले में चाहे बीजेपी की सरकार हो सपा की या कांग्रेस की कोई किसी से कम नहीं है।
दलितों व पिछड़ों आदि का हक मारने, उन पर अन्याय व अत्याचार करने के मामले में सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। इसी का परिणाम है कि सरकारी कार्यालयों में लाखों आरक्षित पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा, बसपा द्वारा महापुरुषों, संतों के नाम पर बनाए गए पार्को व स्थलों की उपेक्षा भी सपा सरकार के बादे से ही अब तक की जा रही है।
अब इसपर कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान आया. उन्होंने कहा, ‘मायावती को खुश होना चाहिए कि बाबा साहब का स्मारक बनाया जा रहा है. ये चुनाव के लिए नहीं बाबा साहब के सम्मान में हुआ है. इससे पहले भी बाबा साहब के 5 स्थानों को पंच तीर्थ के रूप में विकसित किया है.’
मायावती ने मुख्यमंत्री रहते पूरे लखनऊ शहर को ‘बाबा साहेब आंबेडकर’ को समर्पित कर दिया। पूरे प्रदेश में बाबा साहेब के स्मारकों का निर्माण कराया, पार्क बनवाए, चौक बनवाए। तब भाजपा को यह ‘पैसे की बर्बादी’लगता था। आज लखनऊ में ‘सांस्कृतिक केंद्र’बना रहे हैं। यह सिर्फ दलितों के वोटों के बिखराव की चाल है
उत्तर प्रदेश में क़रीब 21 फीसदी दलित वोट है. इसका एक बड़ा हिसा अभी तक बसपा के पास है. चुनाव में उनको चाहे जितनी सीटें मिलें लेकिन बसपा का वोट प्रतिशत बहुत कम नहीं होता. 2014 में मोदी की आमद के साथ ही BJP ने जाटव वोटों में सेंध लगाने की कोशिश शुरू की है और पार्टी को उसके अच्छे नतीजे भी मिले हैं. साल 2017 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 86 आरक्षित सीटों में से बीजेपी 68 सीट जीत गयी जबकि बसपा को सिर्फ 2 सीटें मिली थी.