बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान संकाय और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कौशल कुमार मिश्रा ने अब अब अपनी जातिगत फेसबुक पोस्ट हटाई है। हटाई गई फेसबुक पोस्ट में ब्राह्मण मिश्रा ने कहा था की, भारत में कोई अपनी क्षमता के कारण डॉक्टर नहीं बनता बल्कि भीम बाबा के संविधान के कारण बनता है।सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने एससी-एसटी- ओबीसी समुदाय की आलोचना की। एससी, एसटी, ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक छात्र संगठन ने प्रोफेसर की टिप्पणी के खिलाफ जिला प्रशासन के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन में शिकायत दर्ज कराई है।
मिश्रा ने 13 मई को एक फेसबुक पोस्ट पर लिखा, “W.H.O. ने कहा कि भारत में 60% डॉक्टर अयोग्य हैं, अब उन्हें कौन बताएगा, यहां डॉक्टर योग्यता से नहीं बाबा भीम के संविधान के कारण बनते है।
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एसओ, लंका पुलिस स्टेशन को संबोधित पत्र में, एससी / एसटी छात्र कार्यक्रम आयोजन समिति के अध्यक्ष और ओबीसी / एससी / एसटी / एमटी संघर्ष समिति (बीएचयू) के सचिव चंदन सागर ने डॉ.बाबासाहब आंबेडकर के खिलाफ पोस्ट को “अपमानजनक टिप्पणी” कहा।
पत्र में आगे कहा गया है, सोशल मीडिया पर पोस्ट डॉ.बाबासाहब आंबेडकर का अपमान करने के उद्देश्य से लिखा गया था। अपने संदेश के साथ वह यह कहने की कोशिश कर रहे थे कि बाबासाहेब की वजह से 60% भारतीय डॉक्टर अयोग्य हैं, जो कि झूठा दावा है।
राष्ट्रनिर्माते डॉ.बाबासाहब आंबेडकर का नाम लेकर, संकाय ने संवैधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण के माध्यम से उच्च शिक्षा में प्रवेश करने वाले अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति पर हमला करने का प्रयास किया है। यह संदेश समाज में द्वेष भावना और जातिगत भेदभाव पैदा करता है। हम आपसे आवेदन पर विचार करने और प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध करते हैं।”
छात्रों ने पुलिस को दी शिकायत में स्क्रीनशॉट संलग्न किया है। जबकि प्रोफेसर नहीं पहुंच सके। जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) बीएचयू राजेश सिंह ने कहा,“सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी उनके निजी विचार हैं, वे विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। विश्वविद्यालय संविधान और डॉ.बाबासाहब आंबेडकर के लिए प्रतिबद्ध है।” यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च स्कॉलर ने बताया, “यह पहली बार नहीं है जब केके मिश्रा ने सोशल मीडिया पर शरारती टिप्पणी की है। चौंकाने वाली बात यह है कि सामाजिक न्याय की इतनी समझ रखने वाला व्यक्ति राजनीति विज्ञान का डीन सीनियर फैकल्टी है। हमने इस शिकायत को गंभीरता से लेने के लिए विश्वविद्यालय और पुलिस को लिखा है।”
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ट्विटर पर लिखते है ये व्यक्ति अब भी BHU में कैसे है? केंद्रीय शिक्षा मंत्री को फ़ैसला करना चाहिए। डिलीट करके चल दिए। माफ़ी माँगनी चाहिए। विचार के लिए न सही तो भाषा के लिए ही सही। इंग्लिश में आज तक कुछ लिखा नहीं और हिंदी इतनी भ्रष्ट। पता नहीं कैसे काम चलाते होंगे? बाबा साहब का अपमान करने से बचना चाहिए था। बाबा साहब राष्ट्र निर्माता हैं।
दिल्ली का सबसे पावरफुल आदमी भी आज अगर बीमार हुआ तो जिस एम्स की इमरजेंसी में पहुंचेगा, वहाँ के हेड प्रोफ़ेसर एल. आर. मुर्मू हैं। ST परिवार में जन्म हुआ। इमरजेंसी केयर के देश के सबसे काबिल डॉक्टरों में से हैं। AIIMS में आंदोलन की वजह से आरक्षण सख़्ती से लागू है। आधे डॉक्टर SC, ST, OBC हैं। वहाँ बेहतरीन डॉक्टर हैं।
जाति श्रेष्ठता बोध का ये भाव राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ी बाधा है। व्यक्ति की सबसे बड़ी पहचान उसकी राष्ट्रीयता होनी चाहिए। मेरी सबसे प्रमुख पहचान ये है कि मैं भारत का नागरिक हूँ। यही मेरी एकमात्र पहचान है।
किसी ख़ास जाति में पैदा होने के कारण कोई श्रेष्ठ है, ऐसा सोचना मनोरोग है। भारत मनोरोगियों का देश है। फ़ेसबुक पर किसी कौशल मिश्रा की एक प्रोफ़ाइल है। इनकी प्रोफ़ाइल पर लिखा है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी BHU के समाज विज्ञान संकाय के डीन हैं। पता नहीं कि प्रोफ़ाइल असली है या फेक। प्रोफ़ाइल पिक्चर देखकर लगता है कि Narendra Modi के करीबी हैं।
लगता नहीं है कि इंग्लिश जानते हैं और हिंदी में एक वाक्य लिखा तो 7 ग़लतियाँ। बेहद भ्रष्ट भाषा।
बाक़ी तमाम पोस्ट में भी बेहिसाब ग़लतियाँ। पाँचवीं का बच्चा भी इनसे शुद्ध हिंदी लिखता है। संविधान और समाज विज्ञान का जो ज्ञान है, वह यहाँ दिख ही रहा है। बाक़ी का उनका ज्ञान उनकी प्रोफ़ाइल पर जाकर देख लें।समाज विज्ञान में स्रोत यानी रेफरेंस का बहुत महत्व है। WHO को ये कोट कर रहे हैं, लेकिन स्रोत नहीं बता रहे हैं। मुझे इनके स्रोत पर संदेह है।
मिश्रा ने ने इससे पहले सरकार की आलोचना करनेवाले वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के मोबाइल नंबर्स सार्वजनिक कर दिए थे.