जातिगत जनगणना की मांग अब पूरे देश में की जा रही है। पूर्व सांसद व वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर भी इसे अनिवार्य बताते हैं। फॉरवर्ड प्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा की यह एक निर्णायक दौर है जब ऊंची जातियों के लोग अपने आर्थिक वर्चस्व को हर हाल में कायम रखना चाहते हैं। वजह यह है संविधान में आरक्षण के कारण संसद और प्रशासन में भागीदारी बढ़ी है। ऊंची जातियों के दबदबे को चुनौती मिली है। पब्लिक सेक्टर कंपनियों के निजीकरण के पीछे भाजपा की मंशा केवल और केवल ऊंची जातियों के हितों की रक्षा करने की है।
प्रकाश आंबेडकर ने कहा की ओबीसी की संख्या की वैधता न होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट इनका आरक्षण खत्म कर रही हैं। इसलिए अब वैधानिक रूप से दिखाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि इनकी जनसंख्या कितनी है? अगर सुप्रीम कोर्ट ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ नहीं करती तो शायद मेरे ख्याल से ओबीसी जाति-आधारित आरक्षण की मांग नहीं उठती और आगे केंद्र सरकार तय करती कि इनको कितना आरक्षण देना है। लेकिन अब तो यह आवश्यक हो गया है। ओबीसी की संख्या तय न होने की वजह से इनका शिक्षा में आरक्षण तय नहीं हो पाया है। जिस तरह इनका राजनीतिक आरक्षण खत्म हुआ, वैसे ही शिक्षा में इनका आरक्षण खत्म होगा। इसी तरह रोजगार में आरक्षण पर भी रोक लग सकती है। इसलिए अब यह अनिवार्य हो गया है कि सरकार जाति-आधारित जनगणना कराकर इन्हें आरक्षण प्रदान करे।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को तो शुरू से आरक्षण दिया जा रहा है। फिर भी बहुत सारे पद खाली रह जाते हैं, उनको भरा नहीं जाता है इस सवाल पर उन्होंने कहा की, हमारे यहां जो व्यवस्था बनाई गई, उसके तहत ही हमें अधिकार मिले हैं। अब सिस्टम को चलाना, लागू करना, उसको दोहराना, उसको दौड़ाना और भगाना है, उसके जो लाभार्थी हैं, उनकी जिम्मेदारी है। आप सिस्टम को दोष नहीं दे सकते। जैसाकि बाबासाहेब ने कहा कि संविधान तो हमलोगों ने बना दिया, यह अच्छा या बुरा है, यह चलाने वाले पर निर्भर करेगा। चलाने वाले की नीयत साफ रही तो अच्छा है। चलाने वाले की नीयत अगर गंदी है तो वह संविधान को दोष देगा। वैसे ही आपको अधिकार मिला है, अधिकार का लाभ लेना और नहीं लेना व्यक्ति पर निर्भर करता है।
मेरा मानना है कि जाति जनगणना से देश में शक्ति का संतुलन बराबर हो जाएगा। ये ऊंची जातियों के लोग बराबर करने की प्रक्रिया से काफी डरते हैं। अभी ओबीसी की जनगणना को लेकर जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ये [केंद्र सरकार] पब्लिक सेक्टर की कंपनियां बेच रही है। इसके खिलाफ भी आवाज उठाना चाहिए क्योंकि जब शक्ति के संतुलन की प्रक्रिया शुरू होगी तो यह सवाल महत्वपूर्ण होगा।