उत्तराखंड में कभी किंग मेकर की भूमिका में रही बहुजन समाज पार्टी को उत्तराखंड में इन दिनों फिर से सक्रिय हुई है. लेकिन राज्य गठन से लेकर अब तक बसपा का जनाधार उत्तराखंड में कम हुआ है. अब चुनाव करीब है तो, BSP चुनावी तैयारियों को धार दे रही है. बसपा नेता सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं. उत्तराखंड में पहले चुनाव से लेकर 2012 के आगामी चुनावों तक बसपा का ग्राफ निरंतर ऊंचाई पर था, लेकिन 2017 के चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई. अब 2022 के चुनाव में बसपा को अपना अस्तित्व फिर से स्थापित करने की चुनौती है.
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में पहला चुनाव 2002 में हुआ. इस दौरान भाजपा, कांग्रेस और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ. कांग्रेस 36 सीटों के साथ सरकार में आई तो भारतीय जनता पार्टी ने 19 सीटों पर जीत दर्ज कराई, तो वहीं बहुजन समाज पार्टी 7 सीट जीत कर तीसरे नंबर पर रही. 2002 में बसपा का मत प्रतिशत 10.93% रहा, 2002 के विधानसभा चुनावों में बसपा मत प्रतिशत उत्तराखंड में तीसरे नंबर की पार्टी के तौर पर था. 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा और भी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. इस चुनावों में बसपा के 8 विधायक जीते और मत प्रतिशत बढ़कर 11.76 प्रतिशत हुआ. हरिद्वार और उधम सिंह नगर की अधिकांश सीटों पर बसपा का दबदबा था. इस दौरान पहाड़ पर भी कई सीटें ऐसी थीं, जिन पर बसपा की हार का आंकड़ा 2000 से कम रहा. लेकिन वक्त के साथ-साथ बसपा का वोट बैंक भी गिरता गया और विधायकों की संख्या भी घटती गई.
2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा 3 विधायकों पर सिमट गई. हालांकि, मत प्रतिशत बढ़कर 12.99 फीसदी पर पहुंच गया. बसपा के 2012 के चुनाव भले तीन ही विधायक थे, लेकिन इस बार बसपा ने किंग मेकर की भूमिका निभाई और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार में शामिल हुई. भगवानपुर से विधायक सुरेंद्र राकेश बसपा कोटे के कैबिनेट मंत्री भी बने, लेकिन बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए. 2017 के चुनाव में बसपा का उत्तराखंड से सूपड़ा साफ हो गया. इस चुनाव में बसपा का एक भी विधायक जीतकर विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया. लेकिन 2022 के चुनाव में भी बसपा दमखम के साथ चुनाव लड़ने का दावा कर रही है. इस बीच बसपा के जनाधार के आधार पर आम आदमी पार्टी ने भी अपनी जगह बना ली है.
उत्तराखंड में 2022 के चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच होगा. लेकिन बसपा भी अपनी सियासी जमीन को फिर मजबूत करने का दावा कर रही है. पंजाब के बाद उत्तराखंड में भी बसपा क्या कमाल दिखा सकती है ये तो आनेवाला वक्त ही बताएंगा। लेकिन बसपा को जोरदार म्हणत करनी पड़ेंगी, तभी कुछ संभव है.