*भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवन करने वाले अनागरिक धम्मपाल (धर्मपाल) (जन्म 17-09-1864 से महाप्रयाण 29-04-1933)
*बचपन का नाम* – डेविड हेवावितरणे
*पिता* – डान केरोलिस हेवावितरणे
*माता* – मल्लिका धर्मागुनवर्धने
*जीवन परिचय* – बालक डेविड का जन्म एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था.
इनके शुरूआती जीवन में मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट का बहुत बड़ा योगदान है.
सन् 1875 के दौरान मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट ने अमेरिका के न्यूयार्क में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की थी. इन दोनों ने बौद्ध धर्म का काफी अध्ययन किया था मगर 1880 में ये श्रीलंका आये तो इन्होने वहां न सिर्फ स्वयं को बुद्धिष्ट घोषित किया बल्कि भिक्षु का वेश धारण किया. इन्होने श्रीलंका में 300 के ऊपर स्कूल खोले और बौद्ध धर्म की शिक्षा पर भारी काम किया. डेविड इनसे काफी प्रभावित हुए. बालक डेविड को पालि सीखने की प्रेरणा इन्हीं से मिली. यह वह समय था जब डेविड ने अपना नाम बदल कर *”अनागरिक धम्मपाल”* कर दिया था.
1891 में अनागरिक धम्मपाल ने भारत स्थित बौद्ध गया के महाबोधि महाविहार की यात्रा की.यह वही जगह है जहाँ सिद्धार्थ गोतम को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी.वे देखकर हैरान रह गए की किस प्रकार से पुरोहित वर्ग ने बुद्ध के मुर्तीयों को हिन्दू देवी-देवता में बदल दिया है. *इन विषमतावादियों ने तब बुद्ध महाविहार में बौद्धो को प्रवेश करने से भी निषेध कर रखा था*
भारत में बौद्ध धम्म और बौद्ध तिर्थ-स्थलों की दुर्दशा देखकर अनागरिक धम्मपाल को बेहद दुख हुआ. *बौद्ध धर्म स्थलों की बेहतरीन के लिए इन्होने विश्व के कई बौद्ध देशों को पत्र लिखा.इन्होने इसके लिए सन् 1891 में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की.* तब इसका हेड आफिस कोलंबो था. किंतु शीध्र ही इसे कोलकाता स्थानांतरित किया गया. महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागरिक धम्मपाल ने एक सिविल सुट दायर किया जिसमें मांग की गई थी कि महाबोधि विहार और दूसरे तीन प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को बौद्धो को हस्तांतरित किये जाये. *इसी रिट का ही परिणाम था कि आज महाबोधि विहार में बौद्ध जा सकते हैं.* परंतु तब भी वहां तथाकथित हिन्दुओं का कब्जा आज भी है.. (और तब तक रहेगा जब तक भारतवासी सोते रहेंगे).
*यह अनागरिक धम्मपाल का प्रयास था कि कुशीनगर, जहाँ तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ था फिर से बौद्ध जगत में दर्शनीय स्थल बन गया.*
*शिकागो में संपन्न विश्व धर्म संसद जो 18 सितंबर 1893 में संपन्न हुआ था अनागरिक धम्मपाल के द्वारा बौद्ध दर्शन पर दिये भाषण से वहां पर उपस्थित दुनीया के विभिन्न धर्मों के विद्वान भौचक्के रह गए. स्वामी विवेकानन्द जी को अधिकृत निमंत्रण नहीं था। अनागारिक धर्मपाल ने बुद्ध के भूमि से आए मित्र को आयोजकों से निवेदन कर अपने भाषण के समय में से तीन मिनट का समय बोलने के लिए दिया था, धर्म-संसद में हिन्दू दर्शन पर स्वामी विवेकानंद का भाषण हुआ था.
अनागरिक धम्मपाल ने अपने जीवन के 40 वर्षों में भारत, श्रीलंका और विश्व के कई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के बहुत से उपाय किये.
इन्होने कई स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराया. कई जगह इन्होने बौद्ध विहारों का निर्माण कराया. *सारनाथ का प्रसिद्ध महाविहार आपने ही बनवाया था.*
13 जुलाई 1931 अनागरिक धम्मपाल बाकायदा बौद्ध भिक्षु बन गये इन्होने प्रव्रज्या ली.16 जनवरी 1933 को प्रव्रज्या पूर्ण हुई और इन्होने उपसंपदा ग्रहण की.. और फिर नाम पड़ा भिक्षु देवमित्र धर्मपाल. बौद्ध धर्म के इतने बड़े पुनर्उद्धारक 29 अप्रैल 1933 को 69 वर्ष की अवस्था में इस दुनिया से विदा हो गये..इनका महाप्रयाण हो गया.
इनकी अस्थियां पत्थर के एक छोटे से स्तूप में मूलगंध कुटी विहार में पार्श्व में रख दी गई.
अनागरिक धम्मपाल बुद्धिष्ट जगत के एक ख्याती प्राप्त हस्ती बौद्ध धर्म के पुनर्उद्धारक भारत में बौद्ध धर्म के पतन के हजारो साल बाद अनागरिक धम्मपाल ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने न सिर्फ इस देश में बौद्ध धर्म का पुन: झंडा फहराया बल्कि एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसके प्रचार-प्रसार के लिए भारी काम किया.