फूलन देवी भारतीय स्त्री का वो चेहरा है जो वास्तविक अर्थों में स्त्रीवादी है, जिसने अपनी अस्मिता और आबरू के लिए यथासम्भव मार्ग चुना। अन्यथा तो स्त्रियाँ ज्यादातर पुरुषों और स्त्रियों दोनों को अग्निपरीक्षा देती हुई, सती होती हुई या आग की लपटों में जलती हुई ही ज्यादा आदर्शमय लगती हैं। पता नहीं कब ये आदर्शों के खोखले आवरणों से बाहर निकलकर सोचना शुरू करेंगे। न जाने कब ये स्त्रियाँ अपने अधिकारों के प्रति सजग होना शुरू करेंगी। अधिकार दिए नहीं जाते, छीने जाते हैं। भारत में तमाम हाशिए के समाज की तरह ही स्त्रियों का जीवन भी ज्यादा अच्छा नहीं रहा है। उसका मूल्यांकन हमेशा पुरुष के आधार पर ही किया गया है। कभी भी उसके स्वतंत्र अस्तित्व व उसकी योग्यताओं को या तो आंकलन किया ही नहीं यदि किया भी गया तो केवल पारिवारिक रिश्तों-नातों में बांधकर।
आजकल भारत में जिस इलीट फेमिनिज्म का दौर चल रहा है वो वास्तविक अर्थों में सच्चाई से बहुत दूर है। कई बार ये देखा जाता है कि कुछ शिक्षित महिलाएं व्यक्तिगत कुंठाओं को फेमिनिज्म के नाम पर भड़ास में बदल देती हैं। ज्यादातर देखा जाता है कि एक आम जीवन में अपनी असफलताओं या दो व्यक्तियों के बीच की बातचीत में कमजोर तर्कों को फेमिनिज्म के खोखले आवरण से ढकने का फूहड प्रयास किया जाता है। जब भी फेमिनिज्म की बात आती है तो भारतीय फेमिनिज्म के प्रतिमानों थेरीगाथा की थेरियों के आत्मकथांश से लेकर राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले तक, बाबासाहेब अम्बेडकर के प्रयासों तथा उनके बाद से अनवरत आज तक जिन महिलाओं का योगदान रहा है, उसे दरकिनार करते हुए केवल वामपंथी फेमिनिज्म तक सिमट कर रह जाता है पूरा डिस्कोर्स।
अस्तु, फूलन देवी को अभी भी वामपंथी फेमिनिज्म ने वो स्पेस नहीं दिया है, जो वास्तविक अर्थों में फेमिनिस्ट हैं। इसके पीछे कारण फूलन देवी का सामाजिक बैकग्राउंड है जो जन्म से ही जाति की उच्चता की वजह से अपनी जाति से इतर गुणों को न देख पाने के रोगों से ग्रसित हो चुकी हैं, वातानुकूलित विमर्श करने वालियों को दिखाई नहीं देता है। आजकल विभिन्न हाशिये के समाज की महिलाएं भी ऐसी ही वैचारिकी को डिस्कोर्स मानकर अनुसरण करने लग जाती हैं क्योंकि गरियाना बहुत शॉर्टकट है। सांस्कृतिक रूप से अपने डिस्कोर्स की उत्तर – संरचनावाद के तहत आज तक कोई भी नव व्याख्या नहीं देखी गई है।एक बागी से लेकर समाजवादी पार्टी की सांसद तक का सफर तय करते हुए अपने को इतिहास में दर्ज करती हुई फूलन देवी आज न केवल भारतीय समाज का अपितु वैश्विक समाज का आदर्श बन रही है। यदि फूलन देवी क्लास 6 से 12 तक पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाएं, तो भारत की पीढ़ियों को संघर्ष की दास्तान सुनने को मिलेगी और साथ में भविष्य के होने वाले बलात्कारियों और व्यभिचारियों से देश को मुक्ति मिले। आत्मसम्मान के लिए उठाया गया शस्त्र और मुक्ति के लिए सीखा गया शास्त्र बराबर हैं। फूलन देवी ने पहला रास्ता चुना और अपनी अस्मिता तथा आत्मसम्मान के लिए बलात्कारियों को सजा दे दी, सरकारें आज तक उनकी हत्या के आरोपी को फांसी नहीं चढ़ा पाई हैं तो उनसे कानूनों के रख रखाव की आशा करना बिल्ली को दूध की रखवाली पे रखने जैसा है। शहादत दिवस (25 जुलाई) पर उन्हें और उनकी स्मृतियों को याद करते हुए….डॉ. विकास सिंह