तमिलनाडु के विल्लूपुरम गांव में 3 दलित बुजुर्गों को दबंगों ने पैरों पर गिरकर माफी मांगने के लिए मजबूर किए जाने का मामला सामने आया है। बताया गया है कि इन बुजुर्गों का कुसूर ये था कि इन्होंने कोरोना प्रोटोकॉल को का उल्लंघन किया था.
जिसके बाद गांव की पंचायत ने उन्हें यह फरमान सुनाया था। घटना बीते बुधवार की है। लेकिन अब पुलिस ने इस मामले में 8 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
दरअसल, थिरूवेन्नलूर के पास ओट्टानन्डल में दलित समाज के इन बुजुर्गों ने गांव के देवता को खुश करने के लिए संगीत आयोजन रखा था, जिसमें लोग जमा हुए थे। इसकी सूचना मिलने पर पुलिस पहुंची और कोरोना संक्रमण को देखते हुए नियम तोड़ने के कारण तीनों बुजुर्गों को थाने ले आई। बाद में माफीनामा लिखवाकर इन्हें छोड़ दिया गया था।
लेकिन जब ये तीनों बुजुर्ग थिरुमल, संथानम और अरुमुगल 14 मई को पंचायत के सामने पेश हुए तो उन्हें यह पैरों में गिरकर माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया।
ब्राह्मणवादी मानसिकता का ये उदाहरण तो हम समझ सकते है. लेकिन आज भी दलित बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के बताये रास्तें पर न चलते हुए हिन्दू धर्म के ही रीती-रिवाजो से चलते है. और ये ब्राह्मण को श्रेष्ठ मानने वाला धर्म ऐसा है की जो शूद्रों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देता और पल-पल इन्हे निचा दिखाकर इनका अपमान करते रहता है फिर भी लोग नहीं सुधरते. हर दिन कई ऐसे घटनाएं सामने आती है जैसे की दलितों घोड़ी पर न चढ़ने देना, दलितों के साथ अमानवीय व्यवहार, जातिवाद की तमाम घटनाएं घटती रहती है. लेकिन न जाने कौनसी मजबूरी है की आज भी करोडो दलित, हिंदू धर्म से अपमान सहने के बाद भी घुटन की जिंदगी जी रहें है.